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हर किसी कूँ गुज़र-ए-इश्‍क़ में आनाँ मुश्किल / 'सिराज' औरंगाबादी

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हर किसी कूँ गुज़र-ए-इश्‍क़ में आनाँ मुश्किल
राह सीधी है वले राह कूँ पानाँ मुश्किल

किस तरह कीजिए फ़िक्र-ए-शरर-अफ़शानी-ए-अश्‍क
जब कि पानी में लगी आग बुझानाँ मुश्किल

ख़ूब लगती है तिरे चीरा-ए-नुकदार की सज
जिस तरह दिल में चुभी है सो बतानाँ मुश्किल

फूल मेरे कूँ अगर फूल कहूँ भूले सीं
फूल कूँ फूल के फूलों में समानाँ मुश्किल

आतिषीं-रू सीं निहाँ क्यूँकि रख़ूँ सोज-ए-जिगर
जान जाता है ‘सिराज’ अब तो छुपानाँ मुश्किल