भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर किसी से हर जगह चालाकियाँ करते थे हम / गोविन्द राकेश
Kavita Kosh से
हर किसी से हर जगह चालाकियाँ करते थे हम
नासमझ थे इसलिए नादानियाँ करते थे हम
डाँट मिलती थी मगर कब मानते थे उन दिनों
खेलते लड़ते हुए शैतानियाँ करते थे हम
ना कभी हम भीड़ का हिस्सा बने अनकी तरह
रुख बदलते के लिए मनमानियाँ करते थे हम
सब निगाहें हो हमारी ही तरफ हर ओर से
सच कहें, बस इस लिये बदमाशियाँ करते थे हम
जो ज़हर ही बेचते थे हर कहीं बाज़ार में
आईना उनको दिखा गुस्ताखियाँ करते थे हम