भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर की पौड़ी से (2) / संजय अलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चप्पल उतारवाते लोग
रसीद लिए दान मांगते
इंकार सुनते, गेरूए होते
धूसर रंग कल-कल बहता

तर्पण, दीये, पिंड, गेंदें के फूल
ट्यूब, आत्मा, नज़र, पाप
धूसर के साथ गड़मड़ हो रहे