भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर कोई, ऎ दोस्तो! रोता या चिल्लाता नहीं / प्राण शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर कोई, ऎ दोस्तो! रोता या चिल्लाता नहीं।
कौन कहता है कि दुख का मारा मुस्काता नहीं।

देखने में एक-से हैं वे भले ही दोस्तो।
हर सितारा रोशनी भरपूर बरसाता नहीं

लाख हों, ऎ दोस्तो! जग के दबाब उस पर मगर
मन का सच्चा आदमी कसमें कभी खाता नहीं।

सब्र इनसाँ का अगरचे उड़ गया तो उड़ गया
ये वो पंछी है जो फिर से पर हाथ में आता नहीं।

हो मज़े में कोई कितना, दोस्तो! परदेश में
याद अपना देश किस इनसान को आता नहीं।

ये तो मुमकिन है कि टकरा जाए सहसा राह में
जानकर कोई किसी से 'प्राण' टकराता नहीं।