हर क्षण हेने ही लागै छै,
जोत तोरोॅ मन में जागै छै।
एक लहर जों सुख के आवै
मन केॅ दूर भँसैलेॅ जाबै,
कोॅन जनम के विसरी गेलोॅ
गीत-साथ में गेलेॅ जावै;
कभियो गोतै छै यादोॅ में
फेनू तुरत उठैलेॅ जावै,
कोय लहर जों पकड़ै छी तेॅ
दूर-दूर तांय ऊ भागै छै।
की सुख हमरोॅ यही लहर रं
अमृत-जल में धुलै जहर रं,
की हमरा लेॅ प्रेम-प्रीत सब
जेठोॅ के दिन, बीच पहर रं;
ई तपलोॅ धरती पर ऐथैं
सूखी जाय छै नदी-नहर रं,
ओकरै आय धरै लेॅ चाहौं
जे सुख सुख केॅ ही त्यागै छै।