हर ख़्वाब तन्हा रह गए /रमा द्विवेदी
क्या बात अब तुझसे करूं,हर ख़्वाब तन्हा रह गए।
जो बात हम न कह सके, वो अश्रु बन कर बह गए॥
प्रणय के इस अनुबंध को इक बार भी न गुन सके,
झीनी चदरिया प्रेम की इक तार भी न बुन सके,
अहसास बन गए कफ़न तन से लिपट कर रह गए।
जो बात हम न कह सके, वो अश्रु बन कर बह गए॥
कहने को तो हम साथ थे,पर सांसों में थीं दूरियां,
वनवास इक कमरे में था,थीं दिल की कुछ मजबूरियां,
मैं सरिता बन बहती रही,तुम ‘कूल’ बन कर रह गए।
जो बात हम न कह सके, वो अश्रु बन कर बह गए॥
कुछ चाहतें अपनी अधिक थीं, या हमारी भूल थी,
कैक्टस के संग गुलाब था, बस हर घड़ी इक शूल थी,
हर पल लहुलुहान थे , यह दर्द भी हम सह गए।
जो बात हम न कह सके, वो अश्रु बन कर बह गए॥
उम्मीद थी इक रोज तुम हमको समझ कुछ पाओगे,
खुद के अहम को त्याग कर,दिल से हमें अपनाओगे,
बस इक इसी उम्मीद में दिन-रात-दिन गुज़र गए।
जो बात हम न कह सके, वो अश्रु बन कर बह गए॥