भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर घड़ी एक सूर्य का अवसान है / शुभम श्रीवास्तव ओम
Kavita Kosh से
हर घड़ी एक सूर्य का अवसान है,
आजकल दिन की यही पहचान है।
क्यों किसी के होंठ पर मुस्कान है,
एक तबका इसलिए हैरान है।
खुदकुशी होगी मुकम्मल आईए तो-
घाट पर सरकार मेहरबान है।
आँकड़े सच बोलने से डर रहे,
आँकड़ों पर भी लगा इल्ज़ाम है।
आईना सच कह गया फिर आदतन-
आईना होना कहाँ आसान है?