हर घड़ी एक सूर्य का अवसान है,
आजकल दिन की यही पहचान है।
क्यों किसी के होंठ पर मुस्कान है,
एक तबका इसलिए हैरान है।
खुदकुशी होगी मुकम्मल आईए तो-
घाट पर सरकार मेहरबान है।
आँकड़े सच बोलने से डर रहे,
आँकड़ों पर भी लगा इल्ज़ाम है।
आईना सच कह गया फिर आदतन-
आईना होना कहाँ आसान है?