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हर घड़ी हर नगर में कहर है / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

हर घड़ी हर नगर में कहर है।
व्याप्त डर हर गली हर नगर है।।

देखकर चौकिये मत कहर को।
आदमी में भरा खुद जहर है।।

डर गये सांप भी आदमी से।
हर पहर आदमी पे नजर है।।

पान मुँह में लिये चल रहे हैं।
हर सफर में मेरा हमसफ़र है।।

मान की भूख किसको नहीं है।
गर मिला है नहीं तो असर है।।