Last modified on 21 अप्रैल 2018, at 12:18

हर घर एक पृथ्वी / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

यह गृह प्रवेश का मुहूर्त है

प्रवेश करते
मैं अचानक ठिठका
देखा, घर में चींटियों को कतारबद्ध
चिड़िया थी रोशनदान में
गिलहरी मुंडेर से घूरती

और भी कई देखे-अदेखे निवासी थे
जो पता नहीं कैसे
गृह प्रवेश के पहले ही रहने चले आए थे

उनके बर्ताव से लगा कि
वे पीढ़ियों से यहाँ बसे हों

गृहस्वामी के नाते
आहत था मेरा अहं

मेरा अधिकार संदेह से भर गया
मेरा घर पृथ्वी का हिस्सा है
या पृथ्वी मेरे घर का हिस्सा?

तो क्या मैं किसी और के घर में
प्रवेश कर रहा हूँ

“मित्रों क्या मैं तुम्हारे घर में रह सकता हूँ?”
पूछने पर
दीवारें पीछे हट गई थीं
घर का आयतन प्रेम जितना असीम था
और मैंने अपने घर में नहीं
पृथ्वी में प्रवेश किया