भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर चीज़ का खोना भी बड़ी दौलत है / अमजद हैदराबादी
Kavita Kosh से
हर चीज़ का खोना भी बड़ी दौलत है।
बेफ़िकरी से सोना भी बड़ी दौलत है॥
इफ़लास ने सख़्त-मौत आसाँ कर दी।
दौलत का न होना भी बड़ी दौलत है॥
साँचे में अजल के हर घडी़ ढलती है।
हर वक़्त यह शमए-ज़िन्दगी जलती है॥
आती-जाती है साँस अन्दर-बाहर।
या उम्र के हलक़ पर छुरी चलती है॥
हासिल न किया महर से ज़र्रा तुमने।
दरिया से पिया न एक क़तरा तुमने॥
‘अमजद’ साहब! ख़ुदा को क्या समझोगे?
अब तक ख़ुद ही को जब न समझा तुमने॥