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हर चीज़ से मावरा ख़ुदा है / 'रसा' चुग़ताई
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हर चीज़ से मावरा ख़ुदा है
दुनिया का अजीब सिलसिला है
क्या आए नज़र कि रास्तों में
सदियों का ग़ुबार उड़ रहा है
जितनी कि क़रीब-तर है दुनिया
उतना ही तवील फ़ासला है
अल्फ़ाज़ में बंद हैं मआनी
उनवान-ए-किताब-ए-दिल खुला है
काँटों में गुलाब खिल रहे हैं
ज़ेहनों में अलवा जल रहा है