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हर चोट है हौसला / संतोष श्रीवास्तव

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मुझे कहाँ देखना
चाहते हो तुम?
तुम्हारी दी हुई चोट ने
मुझे खानाबदोश बना दिया

नाप लिए मैंने
जलियांवाला बाग से
विकास का दावा करते
तमाम रास्ते

अब नहीं चल पाऊंगी
खून, आतंक, छल भरे
रास्तों पर

अब मेरे हौसले ने
उड़ान तय कर ली है
अब तुम देखना मुझे
चाँद की वादियों में

अपने तरकश में
कसमसाते तीर लिए
बेध पाओगे क्या मुझे?

मेरे पते ठिकाने से तो अब
आँधियाँ भी डर रहीँ