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हर झूठ और सच के दारोमदार हम हैं / अनिरुद्ध सिन्हा
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हर झूठ और सच के दारोमदार हम हैं
काग़ज़ के इस शहर में एक इश्तिहार हम हैं
वो हुस्न वो तबस्सुम और वो निखार हम हैं
तेरे लबों की लाली तेरा सिंगार हम हैं
इस भीड़ में छुपे हैं हाथों में सबके पत्थर
कैसे बताएँ तुझको किसके शिकार हम हैं
अब तेरा मेरा रिश्ता कितने दिनों का रिश्ता
खिलती हुई कली तू जाती बहार हम हैं
जिसपर हमारे घर की खुशियों के दीप जलते
वो ताजदार तू है वो एतबार हम हैं