हर तबस्सुम एक तोहमत हर हँसी इल्जाम है / नज़ीर बनारसी
हर तबस्सुम एक तोहमत हर हॅँसी इल्जाम है
जिन्दगी के देने वाले जिन्दगी बदनाम है
हमको क्या मालूम कैसी सुबह कैसी शाम है
जिन्दगी इक कर्ज़ है, भरना हमारा काम है
मैं हँू और घर की उदासी है, सुकूते शाम <ref>सन्नाटा भरी शाम</ref> है
जिन्दगी ये है तो आखिर मौत किसका नाम है
मेरी हर लगजिश <ref>गलती</ref> में थे तुम भी बराबर के शरीक
बन्दा परवर सिर्फ बन्दे ही पे क्यों इल्जाम है
मुझको है शर्मिन्दगी इसकी कि मेरे साथ-साथ
कातिबे तकदीर <ref>ईश्वर</ref> तेरा भी कलम बदनाम है
सर तुम्हारे दर पे रखना फर्ज था, सर रख दिया
आबरू रखना न रखना ये तुम्हारा काम है
क्या कोठ्र ईनाम भी लेता है वापस ऐ खुदा
जिन्दगी लेता है क्यों वापस अगर ईनाम है
जिन्दगी का बोझ उठा लेना हमारा काम था
हमको अब मंज़िल पे पहुँचाना तुम्हारा काम है
खुशनसीबी ये कि खत से खैरियत पूछी गयी
बदनसीबी ये कि खत भी दूसरे के नाम है
क्या नुमायाँ चूक साकी से हुठ है ऐ ’नजीर’
उसको भूला है सरे फेहरिस्त जिसका नाम है