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हर तरफ़ एक ही समां क्यों है / सर्वत एम जमाल
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हर तरफ़ एक ही समां क्यों है
चेहरा-चेहरा धुआँ-धुआँ क्यों है
पाँव से जब सरक चुकी है ज़मीन
सर पे यह नीला आसमाँ क्यों है
उन दिनों और बात थी, लेकिन
आज हर शख़्स बेज़ुबां क्यों है
कोई परछाईं ही नहीं बनती
धूप सूरज से बदगुमाँ क्यों है
सोच में पड़ गए हैं सारे खेत
अब्र फ़सलों पे मेहरबाँ क्यों है
अब तो घर-घर चिराग जलते हैं
रोशनी फिर यहाँ-वहाँ क्यों है
कोई बतलाए एक बेचारी जुबान
इतने दाँतों के दरम्याँ क्यों है