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हर तरफ़ जंग की अलामत है / ओंकार सिंह विवेक
Kavita Kosh से
हर तरफ़ जंग की अलामत है,
अम्न पर ख़ौफ़-सा मुसल्लत है।
क्या करें उनसे कुछ गिला-शिकवा,
तंज़ करना तो उनकी आदत है।
मुजरिमों को नहीं है डर कोई,
ख़ौफ़ में अब फ़क़त अदालत है।
हमने ज़ुल्मत को रौशनी न कहा,
उनको हमसे यही शिकायत है।
पूछ लेते हैं हाल-चाल कभी,
दोस्तों की बड़ी इनायत है।
बात करते हैं,फूल झरते हैं,
उनके लहजे में क्या नफ़ासत है।
जंग से मसअले का हल होगा,
ये भरम पालना हिमाक़त है।