हर तरफ़ से मात है, ये साफ़ है
और किसका हाथ है ये साफ़ है
चोट बोले और चुप साधे लहू
किन दिनों की बात है ये साफ़ है
हो नुमाइश और सब बेदाग़ हों
तो अँधेरी रात है ये साफ़ है
आँसुओं ने खेत सींचे हैं कभी
ठीक हल बरसात है, ये साफ़ है
कुछ न हो तो आदमी को दर्द हो
दर्द उल्कापात है ये साफ़ है