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हर तरफ एक बेरुख़ी सी है / रंजना वर्मा
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हर तरफ़ एक बेरुखी-सी है
जिंदगी में कोई कमी-सी है
दर्द बैठे छुपा के सीने में
इसलिये आँख में नमी-सी है
तीरगी है बहुत घनी लेकिन
रात में अब भी रौशनी-सी है
तुम नहीं साथ हो मेरे हमदम
याद दिल में मगर छुपी-सी है
है बहुत साँवली मगर बेटी
माँ की नज़रों में तो परी-सी है
धो रही पाप है ज़माने के
यूँ तो गंगा भी इक नदी-सी है
है तेरी याद हिना की खुशबू
दिल हथेली पर रच गयी-सी है