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हर तरफ गहरी नदी है, क्या करें / राकेश जोशी
Kavita Kosh से
हर तरफ गहरी नदी है, क्या करें
तैरना आता नहीं है, क्या करें
ज़िंदगी, हम फिर से जीना चाहते हैं
पर सड़क फिर खुद गई है, क्या करें
यूं तो सब कुछ है नए इस नगर में
पर तुम्हारा घर नहीं है, क्या करें
पेड़, मुझको याद आए तुम बहुत
आग जंगल में लगी है, क्या करें
लौटकर हम फिर शहर में आ गए
फिर भी इसमें कुछ कमी है, क्या करें
तुमसे मिल पाया नहीं, बेबस हूँ मैं
और बेबस ये सदी है, क्या करें