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हर तरफ घेरा बढ़ाती, जी हुजूरों की कतार / उर्मिल सत्यभूषण
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हर तरफ घेरा बढ़ाती, जी हुजूरों की कतार
शान में कुछ गीत गाती, जी हुजूरों की कतार
हुक्मरानों तक भला आवाज़ पहुंचे भी तो क्यों
द्वार पर पहरे बिठाती, जी हुजूरों की कतार
नाच कर उनके इशारों पर अगर वो गिर पड़े
देके बैसाखी चलाती, जी हुजूरों की कतार
व्यूह रचना कर खड़े मुस्का रहे हैं जी हजूर
साथ रोती, साथ गाती, जी हुजूरों की कतार
फिर कोई अर्जुन का बेटा तोड़ने आया है व्यूह
कौरवों सी मुस्कुराती, जी हुजूरों की कतार।