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हर दिन खेलती हो तुम / पाब्लो नेरूदा / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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हर दिन खेलती हो तुम कायनात की रोशनी से ।
बारीक से मेहमान, तुम आती हो फूलों में और पानी में ।
तुम इस गोरे चेहरे से कहीं ज़्यादा, जिसे मैं कसकर थामे होता हूँ
अपने हाथों में एक गुलदस्ते की तरह, हर रोज़ ।
तुम सी कोई नहीं मुझे तुमसे प्यार है ।

आओ, तुम्हें पीले फूलों की चादर पर लिटा दूँ ।
किसने लिखा तुम्हारा नाम धुएँ के अक्षरों में दक्षिण के सितारों के बीच ?
ओह ! तुम्हें याद रखना चाहता हूँ — जैसी कि तुम थी अपने होने से पहले।
अचानक मेरी खिड़की पर तूफ़ानी हवा की चोट और गरज ।

आसमान साए सी मछलियों से भरा एक जाल ।
देर-सबेर उन सबको आज़ाद कर देती है हवा ।
बारिश उतार देती है उसका लिबास ।
पँछी उड़ते हैं, भागते रहते हैं ।
चारों ओर हवा, हवा ही हवा ।

सिर्फ़ मैं ही कर सकता हूँ पौरुष का मुक़ाबला ।
तूफ़ान के बीच घनी पत्तियों का बवण्डर आया और
कल रात आसमान से बन्धी सारी नावें तितर-बितर हो गईं।

तुम यहाँ हो, ओह ! तुम चली नहीं गई ।
मेरी आख़िरी चीख़ का भी तुम जवाब दोगी।
डरी-डरी-सी तुम मुझसे लिपटी हो ।
फिर भी एक हलका सा साया तैर जाता है तुम्हारी आँखों में ।
मेरी नन्हीं, अब भी तुम मेरे लिए लाती हो शहद भरे फूल,
तुम्हारे सीने से भी उन फूलों की महक आती है।
उदास हवा में ख़त्म हो जाती हैं तितलियाँ
मुझे तुमसे प्यार है,
जामुन से तुम्हारे होठों को काटती हैं मेरी ख़ुशियाँ ।
मेरे शब्द तुम पर बारिश की तरह झरते हैं, थपकी देते हैं ।

तुम्हारे जिस्म के बेजोड़ मोती से मुझे अरसे से प्यार है ।
अब तो मुझे यक़ीन है कि यह कायनात तुम्हारी है ।
पहाड़ियों से तुम्हारे लिए ख़ुशियों से भर फूल लाऊँगा,
पहाड़ी बादाम और डाली में भरकर चुम्बन ।

मुझे तुम्हारे साथ
वही करना है जो वसन्त चेरी के पेड़ों से करता है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य