भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर दिन / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर दिन पार करता हूँ शहर का एक व्यस्त चौराहा
हर दिन जाता हूँ एक नई ज़िन्दगी
कई लोग साथ लाते हैं अपने ईश्वर और पार करते
हुए सड़क वे बतियाते हैं ईश्वर के साथ
ईश्वर खु़द परेशान होता है उस वक़्त
अनेकों ईश्वरों में हरेक को चिन्ता होती है
अपने भक्तों के अलावा उनकी भी जो
उनके भक्त नहीं हैं ऐसी चिन्ता उनके लिए लाज़िमी है
चूँकि वे ईश्वर हैं कई बार थक जाते हैं कुछेक ईश्वर
और गम्भीरता से सोचते हैं रिज़ाइन करने की
मन ही मन दो या तीन महीने की नोटिस तैयार करते हैं
फिर याद आता है कि ईश्वर की नोटिस लेने वाला
कोई है नहीं तीव्र यन्त्रणा होती है तब ईश्वर को
और यह सोचते हुए कि दैवी संविधान में ज़रूरत है
संशोधन की और छोड़ते हुए अपने भक्त को दफ़्तर
लौट जाते हैं ये कुछ ईश्वर थोड़ी देर के लिए
जब तक कि रोता आदमी नहीं
चीख़कर पुकारता उसे।