भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर पल की तुम बात न पूछो / मोहम्मद इरशाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हर पल की तुम बात न पूछो
कैसे गुज़री रात न पूछो

बाहर सब-कुछ सूखा-सूखा
अन्दर की बरसात न पूछो

जिसको सुन के पछताओगे
तुम मुझसे वो बात न पूछो

साहिल पे ही डूब गये वो
कैसे थे हालात न पूछो

दुनिया से तो जीत रहा हूँ
ख़ुद से ख़ुद की मात न पूछो

मिलता है ‘इरशाद’ सभी से
उससे उसकी ज़ात न पूछो