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हर फूल बाग़े—हुस्न का काग़ज़ का फूल है / सुरेश चन्द्र शौक़
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हर फूल बाग़े—हुस्न का काग़ज़ का फूल है
इसमें तलाश बू-ए-वफ़ा की फ़ुज़ूल है
उस ज़िन्दगी से पड़ गया है वास्ता हमें
जिसका न कोई ढब है न कोई उसूल है
चल आ शराब—ए—नाब <ref>शुद्ध शराब</ref>से इसको निखार लें
ऐ दिल कुछ आज ज़ीस्त का चेहरा मलूल है
तर्क—ए—तअल्लुक़ात <ref>संबंधों का परित्याग</ref>से तुझ को भी क्या मिला
मैं हूँ इधर मलूल<ref>दुखी</ref>, उधर तू मलूल है
दुनिया के उसूल हैं इससे नही ग़रज़
अपना तो ‘शौक़’! सिर्फ़ महब्बत उसूल है
शब्दार्थ
<references/>