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हर बात सही कहते हो हल क्यों नहीं देते / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
हर बात सही कहते हो हल क्यों नहीं देते
तुम यार ज़माने को बदल क्यों नहीं देते
वादे तो सियासत में बहुत बार किए हैं
जनता से कहा आज तो कल क्यों नहीं देते
जन्नत को बसाना था तुम्हें अपनी ज़मीं पर
तुमने दिए जो पेड़ वो फल क्यों नहीं देते
लोगों ने जो सौंपा तुम्हें विश्वास, न तोड़ो
हर चीज़ नक़ल दी है असल क्यों नहीं देते
तय है कि गुलिस्तान भी आएँगे सफ़र में
ऐ दोसत बियाबान से चल क्यों नहीं देते
पढ़ डाले हैं उसने सभी दीवान तुम्हारे
तुम उसको नए रँग की ग़ज़ल क्यों नहीं देते