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हर बार सब ने माना कि बेकार हो गया / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
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हर बार सब ने माना कि बेकार हो गया
लेकिन फ़साद शहर में हर बार हो गया
ये मज़हबी जुनून है या कोई वाइरस
जिस का ये शहर पल में गिरिफ़्तार हो गया
रंगीन फूल भेंट को अब लाए हैं जनाब
अब जब वो देखने से भी लाचार हो गया
दुनिया लगी है नाचने दौलत के मंच पर
सौदागरों-सा हर कोई किरदार हो गया
क्या-क्या न जाने और भी सहना पड़ेगा अब
सर को उठा के जीना तो दुश्वार हो गया
कितने निज़ाम ज़ुल्म के हम ने मिटा दिए
अब, ज़ुल्म सहना क्यूँ हमें स्वीकार हो गया
ये राजनीति बाज़ न आएगी इस तरह
इस का 'यक़ीन' ख़ून ही बीमार हो गया