हर बे-ज़बाँ को शोला नवा कह लिया करो / क़तील
हर बेज़ुबाँ को शोला-नवा<ref>जिसकी आवाज़ में आग हो</ref> कह लिया करो
यारो, सुकूत<ref>मौन</ref> ही को सदा<ref>आवाज़</ref> कह लिया करो
ख़ुद को फ़रेब दो कि न हो तल्ख़ ज़िन्दगी
हर संगदिल को जाने-वफ़ा कह लिया करो
गर चाहते हो ख़ुश रहें कुछ बंदगाने-ख़ास<ref>विशेष उपासक</ref>
जितने सनम हैं उनको ख़ुदा कह लिया करो
यारो ये दौर ज़ौफ़-ए-बसारत<ref>दृष्टि की कमज़ोरी</ref> का दौर है
आँधी उठे तो उसको घटा कह लिया करो
इंसान का अगर क़द-ओ-क़ामत<ref>डील-डौल</ref> न बढ़ सके
तुम उसको नुक़्स-ए-आब-ओ-हवा<ref>जलवायु का दोष</ref>कह लिया करो
अपने लिए अब एक ही राह-ए-नजात<ref>मुक्ति का रास्ता</ref> है
हर ज़ुल्म को रज़ा-ए-ख़ुदा<ref>ईश्वरेच्छा</ref> कह लिया करो
दिखलाए जा सकें जो न काँटे ज़ुबान के
तुम दास्तान-ए-कर्ब-ओ-बला<ref>दुखों की कहानी</ref> कह लिया करो
ले-दे के अब यही है निशान-ए-ज़िया<ref>प्रकाश का चिह्न</ref> क़तील
जब दिल जले तो उसको दिया कह लिया करो