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हर रात घर लौटते हुए सोचता हूँ / नवल
Kavita Kosh से
हर रात घर लौटते हुए सोचता हूँ
दिन भर की थकान मिटाने के लिए
मेरे ऊपर एक छत है
छत के नीचे एक बिस्तर
बिस्तर पर एक तकिया
और तकिए पर एक इत्मीनान
घर और इत्मीनान और नींद और ख़्वाब
सबके हिस्से में नहीं हैं एक साथ
किसी के पास घर है पर इत्मीनान नहीं
किसी के पास नींद है पर ख़्वाब नहीं
और जिनके पास ख़्वाब हैं
उनके पास न तो नींद है, न इत्मीनान
वे घर का ख़्वाब देखते ही रह जाते हैं।