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हर रोज़, हर रोज़ / दिनेश्वर प्रसाद
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हर रोज़, हर रोज़
वही वही वही
वही दिन आता है
कभी बादलों भरा
कभी चितकबरा,
कभी गेंदे की फुलवारी-सा
वही दिन आता है
सूरज की खूँटी से
उसे उतारें हम
एक साथ
पहन लें
(15 अप्रैल 1966)