हर रोज़ हमें मिलना हर रोज़ बिछड़ना है मैं रात की परछाईं तू सुबह का चेहरा है आलम का ये सब नक़शा बच्चों का घरौंदा है इक ज़र्रे के कब्ज़े में सहमी हुई दुनिया है हम-राह चलो मेरे या राह से हट जाओ दीवार के रोके से दरिया कभी रुकता है