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हर रोज़ / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
फूल हो के
उगते सूरज के साथ जागता हूँ
खिलता हूँ
और कितनी ही देर महक कर
खुशबू हवाओं के हवाले कर
अपने रंगों के साथ हँसता हूँ खेलता हूँ
और शाम को सूरज के साथ
रंगों के साथ मिलकर
अपना फूल होना
पूरा कर लेता हूँ…