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हर लम्हा आह आह किये जा रहा हूँ मैं / ईश्वरदत्त अंजुम

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हर लम्हा आह आह किये जा रहा हूँ मैं
हर लहजा खून दिल का पिये जा रहा हूँ मैं

पाले हुए हैं कांटे भी बादे-बहार के
कांटों से भी निबाह किये जा रहा हूँ मैं

है आंख अश्क़ बार तो दिल सोग बार है
जीने का इक गुनाह किये जा रहा हूँ मैं

रज़्ज़ाके-दो जहां मुझे देता है रिज़के-ग़म
वो दे रहा है और लिए जा रहा हूँ मैं

गो शायरी ज़रीयाए-इज़्ज़त नहीं है अब
फिर भी इसी की चाह किये जा रहा हूँ मैं

अंजुम हुजूमे-ग़म पे किसी का चला है ज़ोर
उसकी रज़ा से फिर भी जिये जा रहा हूँ मैं