भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर सम्त लहू रंग घटा छाई सी क्यूँ है / फ़ुज़ैल जाफ़री
Kavita Kosh से
हर सम्त लहू रंग घटा छाई सी क्यूँ है
दुनिया मेरी आँखों में सिमट आई सी क्यूँ है
क्या मिस्ल-ए-चराग़-ए-शब-ए-आख़िर है जवानी
शिर्यानी में इक ताज़ा तवानाई सी क्यूँ है
दर आई है क्यूँ कमरे में दरियाओं की ख़ुश्बू
टूटी हुई दीवारों पे ललचाई सी क्यूँ हैं
मैं और मेरी ज़ात अगर एक ही शय हैं
फिर बरसों से दोनों में सफ़-आराई सी क्यूँ है