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हर साल बरसात में / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
हर साल बरसात में
जमीन खिसकती है
और पहाड़ दब जाता है।
पत्थरों और कीचड़ से सनी
टूटी सड़कें
नहीं ला पाती अखबार
और राहत सामग्री।...
कभी-कभी
पूरे पाँच साल बाद
पहाड़ से मलवा हटता है।
सड़ी हुई मिट्टी के ढेर में
कुछ नहीं मिलता
सिवाय
रेशमी कपड़े पर
नक्काशीदार शब्दों में लिखे
शोक संदेश के।
सन्नाटा गंूजता है देर तक...
तभी
मलवे के ढेर पर
नोटों की गड्डी पकड़े
एक हाथ उगता है,
जब कुछ मरियल भूखे
झपटते हैं, उस पर
तो पास ही उगा
दूसरा हाथ
उन सबके अंगूठे के
बगल वाली अंगुली में
नीला निशान लगा देता है।