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हर सितारा बुझा बुझा सा है / सुभाष पाठक 'ज़िया'
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हर सितारा बुझा बुझा सा है
दिल हमारा बुझा बुझा सा है
तेरी नज़रें तो ख़ूब हैं लेकिन
ये नज़ारा बुझा बुझा सा है
जल गया है किसी का घर शायद
गाँव सारा बुझा बुझा सा है
जैसे तैसे तो लकड़ियाँ सूखीं
अब शरारा बुझा बुझा सा है
जीत जाऊँ तो खिल उठे चेहरा
जब से हारा बुझा बुझा सा है
ढक लिया अब्र ने 'ज़िया' शायद
चाँद प्यारा बुझा बुझा सा है