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हर हसीं चीज़ का मैं तलब्गार हूँ / रविन्द्र जैन

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हर हसीं चीज़ का मैं तलब्गार हूँ
रस का फूलों का गीतों का बीमार हूँ
हर हसीं चीज़ का मैं तलब्गार हूँ

सारा गाँव मुझे रसिया कहे
जो भी देखे मन्बसिया कहे
हाय रे जो भी देखे मन्बसिया कहे
सब की नज़रों का एक मैं ही दीदार हूँ
रस का फूलों का गीतों का बीमार हूँ ...

कोई कहे भँवरा मुझे कोई दीवाना
 भेद मेरे मन का मगर किसी ने न जाना
रोना मैं ने कभी सीखा नहीं
चखा जीवन में फल फीका नहीं
हाय रे हाय चखा जीवन में फल फीका नहीं
मैं तो हर मोल देने को तैयार हूँ
रस का फूलों का गीतों का बीमार हूँ ...