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हलक़े में चल रहा है दौरा अमीन का / श्याम कश्यप बेचैन
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हलक़े में चल रहा है दौरा अमीन का
हो जाए ना सिफ़र कहीं रकबा ज़मीन का
दिल भी नहीं रहा है अब अपने यक़ीन का
बन जाए ना ये साँप कहीं आस्तीन का
रहती है बिल बना मेरे अंदर जो नागिनें
उनको निकाल दे कोई अंदाज़ बीन का
चाहे जहाँ लगा दो चलाओ निकाल दो
इन्सान बन गया है पुर्जा मशीन का
इतरा के कह रहा है कि हम बम से कम नहीं
टुकड़ा हवा में उड़ता हुआ पॉलिथीन का
यह मेरे घर के दिल की है चलती हुई धड़कन
समझा है जिसको आपने टुकड़ा जमीन का
निकली अभी जो चीख़ किसी दिल की है कराह
टूटा है तार या कि किसी वायलिन का
आए हैं चालने को वे चलनी लिए हुए
जब फ़र्क़ ख़त्म हो गया मोटे महीन का