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हलाहल और अमिय, मद एक / हरिवंशराय बच्चन

हलाहल और अमिय, मद एक,
एक रस के ही तीनों नाम,
कहीं पर लगता है रतनार,
कहीं पर श्‍वेत, कहीं पर श्‍याम,

हमारे पीने में कुछ भेद
कि पड़ता झुक-झुक झुम,
किसी का घुटता तन-मन-प्राण,
अमर पद लेता कोई चूम।