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हलिया हाथ पड़ो कठिन लै है गेछ दिन धोपरी…. / गुमानी
Kavita Kosh से
एक विधवा की दशा :
हलिया हाथ पड़ो कठिन लै है गेछ दिन धोपरी….
बांयो बल्द मिलो छू एक दिन ले काजूँ में देंणा हुराणी….
माणों एक गुरुंश को खिचड़ी पेंचो नी मिलो….
मैं ढोला सू काल हरांणों काजूं के धन्दा करूँ….
कविता का अर्थ :
अर्थात – बेचारी को मुश्किल से दोपहर के समय एक हलवाहा मिला ….और केवल बाँई ओर जोता जाने वाला बैल मिल पाया, दाँया नहीं मिला…. खिचड़ी का एक माणा (माप का एक बर्तन) भी उसे कहीं से उधार नहीं मिल पाया…. निराश होकर वह सोचती है कि कितनी बदनसीब हूँ मैं ….कि मेरे लिये काल भी नहीं आता….।