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हल की मूठ गहो / शील

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क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी —
हल की मूठ गहो!
           नवोन्मेष को मुखरित स्वर दो,
           अभ्यागत आगत को बल दो,
           अंकुर को जल-धूप —
           पवन से कह दो, समुद बहो।
           हल की मूठ गहो।
क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी —
हल की मूठ गहो!
           अगणित कुश-कंटक उग आए,
           बैलों से बबूल टकराए।
           ये हैं, कृषि के रोग —
           बीज के दुश्मन,
           इन्हें दहो।
           हल की मूठ गहो।
क्षेत्र क्षीण हो जाए न साथी —
हल की मूठ गहो!