हल छूटग्या तै सब मिट ज्यांगे जितने फैल लागरे / मेहर सिंह
राजा रईयत लखपति सब देख तेरी गैल लागरे
हल छूटग्या तै सब मिट ज्यांगे जितने फैल लागरे।टेक
तनैं भोले पन म्हं धन खोया तेरी मिचगी आंख जाग म्हं
पाट्टे कपड़े टूट्टे लित्तर गन्ठा रोटी भाग म्हं
साहूकार कै छौंक लगै तेरै आलण पड़ै ना साग म्हं
तेरी बीर ज्वारा ढोवै सिठाणी सूंघै फूल बाग म्हं
तनैं सोवण नै खाट थ्यावै ना उनकै रूई के सैं पहल लागरे।
घर घर वेद उचारण तनै फूट बिमारी खोगी
बैलां ऊपर फैल भारत की किस्मत सोगी
तनैं रोटी तक ना मिलै खाण नै इसी दुर्गती होगी
टोटे म्हं फेर करी नौकरी उड़ै ये मुसीबत भोगी
बिन आई मौत फौज म्हं तेरे मरण छैल लागरे।
आवै साढ़ फेर माणस मिलै ना तम हाली खातर दौड़ो
के कागज नै फुक्कोगे के आपणी किसमत फोड़ो
ऐड़ी तक थारै आवै पसीना बल्दां की पूंछ मरोड़ो
पुंजीपति ना हल बहावै कर सेठाणी नै जोड़ो
90 रुपये मण तोल तुला तम बेचण बैल लागरे
सत के बैल प्रेम तैं जोड़ों स्वर्ग म्हं बास करोगे
गऊ माता की सेवा तज कै आपणा नास करोगे
ज्यादा दुखी करोेगे तो तम बी दुःख के सांस भरोगे
घी दूध दही अन्न किततै आवै फेर के घास चरोगे
गुरु ज्ञान का सामण ल्याया मेहर सिंह काटण मैल लागरे।