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हवस-ए-दिल / अली सरदार जाफ़री
Kavita Kosh से
‘हवस को है निशाते-कार क्या-क्या’
-गा़लिब
हवस-ए-दिल है कि रक़्से-महो-साल और अभी
लुत्फ़े-माशूक़ः-ए-ख़ुर्शीदे-जमाल और अभी
दर अभी बन्द न हो शौक़ के मयखा़ने का
जामे-जम<ref>ईरान के एक वैभवशाली शासक का प्याला</ref> और अभी जामे-सिफ़ाल<ref>मिट्टी का प्याला</ref> और अभी
इक ग़ज़ल और किसी दुश्मने-जाँ की ख़ातिर
वही आतशकदः-ए-हिज्रो-विसाल और अभी
बस निखरने ही को है दर्द के शो’ले का जमाल
चश्मे-मज़्लूम में थोडा़-सा जलाल और अभी
शब्दार्थ
<references/>