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हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं / साग़र ख़य्यामी
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हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं
मैं मुंतज़िर हूँ मगर तेरा इन्तज़ार नहीं
हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रग-ए-बहार
हमीं को नज़्म-ए-गुलिस्ताँ पे इख़्तियार नहीं
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का महौल ख़ुशगवार नहीं
तुम्हारे अहद-ए-वफ़ा को अहद मैं क्या समझूँ
मुझे ख़ुद अपनी मोहब्बत का ऐतबार नहीं
न जाने कितने गिले इस में मुज़्तरिब है नदीम
वो एक दिल जो किसी का गिलागुसार नहीं
गुरेज़ का नहीं क़ायल हयात से लेकिन
जो सोज़ कहूँ तो मुझे मौत नागवार नहीं
ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने
कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं