Last modified on 11 अगस्त 2020, at 15:32

हवस परस्त है दिल का मकान ले लेगा / विकास

हवस परस्त है दिल का मकान ले लेगा
दिलों में रह के भी रिश्तों की जान ले लेगा

उसे तो फ़िक्र है अपनी ही हक़ परस्ती की
कभी ज़मीन कभी आसमान ले लेगा

लबों के झूठ को सच में बदलने की ख़ातिर
वो अपने हाथ में गीता कुरान ले लेगा

किसे पता था कि पैदल निकल पड़ेंगे सब
नया ये रोग ज़माने की शान ले लेगा

उसे यक़ीन न होगा मेरी वफ़ा पर तो
हंसी हंसी में मेरा इम्तिहान ले लेगा

कभी जुनून की हद से जो दूर जाएगा
वो अपने हक़ में फ़लक का वितान ले लेगा