भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवाएँ ये / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
हवाएँ ये
नरम बिस्तर की
पहली
शीतल छुअन-सी
तुम्हारे भी तो
घर बही होंगी
तुम्हें भी
याद आये क्या
रजाई से गरमाये
देह-स्पर्श
अपने?