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हवाओं ने किया उत्पात / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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आज जंगल में
हवाओं ने किया उत्पात

सो रहे थे पेड़
उनको नींद से ज़वरन उठाया
बर्फ़ के आदी समय को
राग वासन्ती सुनाया

औ’ जगाये
उम्र से भूले हुए ज़ज्बात

ठूँठ बिरवों के तनों पर
लिखी कोंपल की इबारत
कहा पथराये ह्रदय से –
करो सूरज की इबादत

द्वार खोलो
सुनो केवल धूप की ही बात

धुंध-कोहरे की गुफा में
इन्द्रधनुषी रँग बिखेरे
झुर्रियों में छिपे
मीठी छुवन के एहसास हेरे

और भर दी
गुफा-मन में धूप की सौगात