भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हवा-एक-दो / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक
हवा पहाड़ी झरने की झनकार हो गई
जिस तक पहुँची उसको वह स्वीकार हो गई

दो
हवा कठिन सरकार हो गई
चल न सकी वह, भार हो गई

रचनाकाल: १६-०७-१९६१