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हवा आ रही है / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
सनन-सन, सनन-सन
हवा आ रही है।
झनन-झन, झनन-झन
हवा जा रही है।
लो, खिड़की के पर्दे
सरकने लगे हैं,
ये दरवाजे खट-खट-
खट बजने लगे हैं,
गवैया है, गुन-गुन
हवा गा रही है।
ये गौरैया चह-चह
चहकने लगी है,
गुलाबों की बस्ती
महकने लगी है,
हवा, ‘मैं हूँ जीवन’,
ये बतला रही है।
सनन-सन, सनन-सन
हवा आ रही है।