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हवा के हौसले जंज़ीर करना चाहता है / शहनाज़ नूर
Kavita Kosh से
हवा के हौसले जंज़ीर करना चाहता है
वो मेरी ख़्वाहिशें तस्वीर करना चाहता है
नज़र जिस से चुरा कर मैं गुज़रना चाहती हूँ
वो मौसम ही मुझे तस्ख़ीर करना चाहता हूँ
विसाल-ए-दीद को आँखें छुपाना चाहती हैं
मगर दिल वाक़िआ तहरीर करना चाहता है
मिज़ाज-ए-बाद-ओ-बाराँ आश्ना है शौक़ लेकिन
नए दीवार-ओ-दर तामीर करना चाहता है
मिरे सारे सवाल उस की नज़र के मुंतज़िर हैं
वो दानिस्ता मगर ताख़िर करना चाहता है