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हवा कौन फिर तौल रहा / वैभव भारतीय
Kavita Kosh से
जब सबको ही प्यार चाहिए
धोखे कौन बनाता है फिर
सबको है झूठों से नफ़रत
झूठ कौन फैलाता है फिर?
जब उजियारों के सब क़ायल
जब सबकी इच्छा जीने की
तो कौन वहाँ अन्धियारों से
जीवन रस सबका खींच रहा?
सब मधुर-मधुर सुनना चाहें
तो कौन विष-बुझा बोल रहा
जब सब गणना से असहज हैं
तो हवा कौन फिर तौल रहा?